Saturday, July 17, 2010

डॉ• वेदप्रताप वैदिक

इस ब्लॉग पर श्री वेद प्रताप वैदिक जी के लेख प्रकाशित किये जायेंगे |

वेद प्रताप वैदिक : परिचय
 
डॉ• वेदप्रताप वैदिक हिन्दी के वरिष्ट पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, पटु वक्ता एवं हिन्दी प्रेमी हैं। उनका जन्म एवं आरम्भिक शिक्षा मध्य प्रदेश के इन्दौर नगर में हुई। हिन्दी को भारत और विश्व मंच पर स्थापित करने के की दिशा में सदा प्रयत्नशील रहते हैं।

वेद प्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसम्बर 1944 को हुआ। स्कूल में ये हमेशा प्रथम स्थान पाते रहे। 1971 में में उन्होंने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यायल से पीएचडी पूरी की। विषय था अंतराष्ट्रीय संबंध्। अपनी पीएचडी की थीसीस हिंदी में लिखने के कारण वैदिक को संस्थान से निकाल दिया गया। इस पर पूरे देश ने तीखी प्रतिक्रिया दर्ज कराई। भारतीय संसद में इस विषय पर काफी चर्चा हुई। आखिरकर वेद प्रताप वैदिक ने जंग जीती। छात्रों को यह अधिकार प्रदान किया गया कि ये अपनी मातृभाषा में पीएचडी की थीसिस लिख सकते हैं।

उसके बाद 1962 से वेद प्रताप वैदिक भारतीय और विदेशी टेलीविजन पर कई कार्यक्रमों में आने लगे। एक दर्जन से ज्यादा अखबारों ने उनके कालम प्रकाशित करने शुरू कर दिये। कई विश्वविद्यालयों की तरफ से राजनीति पर बोलने के लिए उन्हें आमंत्रित किया जाने लगा। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के मोती लाल नेहरू कालेज में राजनीति शास्त्र पढ़ाना शुरू किया।


वैदिक रशियन, परशियन, अंग्रेजी, संस्कृत, हिंदी के अलावा कई अन्य भारतीय भाषाएं जानते हैं। अपने शोध के दौरान वेद प्रताप वैदिक ने न्यूयार्क, लंदन और मास्को के शिक्षण संस्थानों में अध्ययन किया। अफगानिस्तान का कोना-कोना उन्होंने परख लिया। विदेशी मामलों के विशेषज्ञ होने के कारण वैदिक भारतीय मंत्रियों और कई विदेशी नेताओं की जरूरत बन गए। 1999 में वो सयुंक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य भी बने।

वेद प्रताप वैदिक अब तक करीबन 60 देशों की यात्रा कर चुके हैं। वो भारतीय सरकार की कई सलाहकार समितियों के सदस्य भी रह चुके हैं। इस समय वो काउंसिल फार इंडियन फारन पालिसी और भारतीय भाषा सम्मेलन के चैयरमैन हैं। वेद प्रताप वैदिक ने अफगानिस्तान से संबंधित दो पुस्तकें और 80 लेख लिखे हैं। उनका अफगानिस्तान के अध्यक्ष, प्रधानमंत्री सहित कई प्रमुख नेताओं से सीधा संपर्क है।

वैदिक जी ने एक लघु पुस्तिका विदेशों में अंग्रेजी की रचना की है जिसमें बडे तर्कपूर्ण ढंग से बताया गया है कि कोई भी स्वाभिमानी और विकसित राष्ट्र अंग्रेजी में नहीं बल्कि अपनी मातृभाषा में सारा काम करता है। उनका विचार है कि भारत में अनेकानेक स्थानों पर अंग्रेजी की अनिवार्यता के कारण ही आरक्षण की जरूरत पड रही है।

 पुस्तकें :
अंग्रेजी हटाओ: क्यों और कैसे
एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका

पुरस्कार :
विश्व हिंदी सम्मान
पत्रकारिता भूषण सम्मान

अधिक जानने के लिए यह भी देखें :

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